बड़ी सोच का बड़ा जादू 🚩🌹🙏🙏🌹🚩अभ्यास ही सबसे बड़ा गुरू है !गुरु द्रोणाचार्य, पाण्डवोँ औरकौरवोँ के गुरु थे, उन्हेँ धनुर्विद्या का ज्ञान देते थे। एक दिनएकलव्य जो कि एक गरीब शुद्र परिवार से थे. द्रोणाचार्य के पास गये और बोले किगुरुदेव मुझे भी धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करना है आपसे अनुरोध है कि मुझे भी अपनाशिष्य बनाकर धनुर्विद्या का ज्ञान प्रदान करेँ।किन्तु द्रोणाचार्य नेँ एकलव्य को अपनी विवशताबतायी और कहा कि वे किसी और गुरु से शिक्षा प्राप्त कर लें। यह सुनकर एकलव्य वहाँसे चले गये। इस घटना के बहुत दिनों बाद अर्जुन और द्रोणाचार्य शिकार के लिये जंगलकी ओर गये। उनके साथ एक कुत्ता भी गया हुआ था। कुत्ता अचानक से दौड़ते हुय एक जगहपर जाकर भौँकनेँ लगा, वह काफी देर तक भोंकता रहा और फिर अचानक हीभौँकना बँद कर दिया। अर्जुन और गुरुदेव को यह कुछ अजीब लगा और वे उस स्थान की औरबढ़ गए जहाँ से कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आ रही थी।उन्होनेँ वहाँ जाकर जो देखा वो एक अविश्वसनीयघटना थी। किसी ने कुत्ते को बिना चोट पहुंचाए उसका मुँह तीरोँ के माध्यम से बंद करदिया था और वह चाह कर भी नहीं भौंक सकता था। ये देखकर द्रोणाचार्य चौँक गये औरसोचनेँ लगे कि इतनी कुशलता से तीर चलाने का ज्ञान तो मैनेँ मेरे प्रिय शिष्यअर्जुन को भी नहीं दिया है और न ही ऐसे भेदनेँ वाला ज्ञान मेरे आलावा यहाँ कोईजानता है…. तो फिर ऐसी अविश्वसनीय घटना घटी कैसे ?तभी सामनेँ से एकलव्य अपनेँ हाथ मेँ तीर-कमानपकड़े आ रहा था। ये देखकर तो गुरुदेव और भी चौँक गये। द्रोणाचार्य नेँ एकलव्य सेपुछा, “ बेटा तुमनेँ ये सब कैसे कर दिखाया।”तब एकलव्य नेँ कहा, “गुरूदेव मैनेँ यहाँ आपकी मूर्ती बनाईहै और रोज इसकी वंदना करने के पश्चात मैं इसके समकक्ष कड़ा अभ्यास किया करता हूँ औरइसी अभ्यास के चलते मैँ आज आपके सामनेँ धनुष पकड़नेँ के लायक बना हूँ।,गुरुदेव ने कहा, “तुम धन्य हो ! तुम्हारे अभ्यास ने हीतुम्हेँ इतना श्रेष्ट धनुर्धर बनाया है और आज मैँ समझ गया कि अभ्यास ही सबसे बड़ागुरू है।”
💞 बड़ी सोच का बड़ा जादू 💞
आगे बढ़ने के लिए जरुरी है की लोगो को आगे बढ़ने में मदद करें!
जापान के टोक्यो शहर के निकट एककस्बा अपनी खुशहाली के लिए प्रसिद्द था. एक बार एक व्यक्ति उसकसबे की खुशहाली का कारण जानने के लिए सुबह-सुबह वहाँ पहुंचा. कस्बे में घुसते ही उसे एक कॉफ़ी शॉप दिखायी दी। उसने मन ही मन सोचा किमैं यहाँ बैठ कर चुप-चाप लोगों को देखता हूँ, और वह धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए शॉपके अंदर लगी एक कुर्सी पर जा कर बैठ गया.
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कॉफ़ी-शॉप शहर के रेस्टोरेंटस कीतरह ही थी, पर वहाँ उसे लोगों का व्यवहार कुछ अजीब लगा. एक आदमी शॉप में आया औरउसने दो कॉफ़ी के पैसे देते हुए कहा, “दो कप कॉफ़ी, एक मेरे लिए औरएक उस दीवार पर ।”
व्यक्ति दीवार की तरफ देखने लगालेकिन उसे वहाँ कोईनज़र नहीं आया, पर फिर भी उसआदमी को कॉफ़ी देने के बाद वेटर दीवार के पास गया और उस पर कागज़ का एकटुकड़ा चिपका दिया, जिसपर “एक कप कॉफ़ी” लिखा था. व्यक्ति समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है. उसने सोचा कि कुछ देर और बैठता हूँ, और समझने की कोशिश करता हूँ. थोड़ीदेर बाद एक गरीब मजदूर वहाँ आया,उसके कपड़े फटे-पुराने थेपर फिर भी वह पुरे आत्म-विश्वास के साथ शॉप में घुसा और आराम से एक कुर्सी पर बैठ गया. व्यक्ति सोच रहा था कि एक मजदूर के लिए कॉफ़ी परइतने पैसे बर्वाद करना कोई समझदारी नहीं है. तभी वेटर मजदूरके पास आर्डर लेने पंहुचा.
“सर, आपका आर्डर प्लीज !”, वेटर बोला.
“दीवार से एक कप कॉफ़ी”, मजदूर ने जवाब दिया.
वेटर ने मजदूर से बिना पैसे लिएएक कप कॉफ़ी दी और दीवार पर लगी ढेर सारे कागज के टुकड़ों में से “एक कप कॉफ़ी” लिखा एक टुकड़ानिकाल कर डस्टबिन में फेंक दिया. व्यक्ति को अब सारी बात समझ आ गयी थी. कसबेके लोगों का ज़रूरतमंदों के प्रति यह रवैया देखकर वह भाव-विभोर हो गया.उसे लगा, सचमुच लोगों ने मदद का कितना अच्छा तरीका निकाला है जहां एक गरीबमजदूर भी बिना अपना आत्मसम्मान कम किये एक अच्छी सी कॉफ़ी-शॉप में खाने-पीने काआनंद ले सकता है. अब वह कसबे की खुशहाली का कारण जान चुका था और इन्ही विचारों के साथ वापस अपने शहर लौट गया.
इसी तरह जिंदगी में आगे बढ़ने केलिए जरुरी है की हम अपने साथ आये लोगो को भी आगे बढ़ने में मदद करें...
बड़ी सोच का बड़ा जादू
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अभ्यास ही सबसे बड़ा गुरू है !
गुरु द्रोणाचार्य, पाण्डवोँ औरकौरवोँ के गुरु थे, उन्हेँ धनुर्विद्या का ज्ञान देते थे। एक दिनएकलव्य जो कि एक गरीब शुद्र परिवार से थे. द्रोणाचार्य के पास गये और बोले किगुरुदेव मुझे भी धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करना है आपसे अनुरोध है कि मुझे भी अपनाशिष्य बनाकर धनुर्विद्या का ज्ञान प्रदान करेँ।
किन्तु द्रोणाचार्य नेँ एकलव्य को अपनी विवशताबतायी और कहा कि वे किसी और गुरु से शिक्षा प्राप्त कर लें। यह सुनकर एकलव्य वहाँसे चले गये। इस घटना के बहुत दिनों बाद अर्जुन और द्रोणाचार्य शिकार के लिये जंगलकी ओर गये। उनके साथ एक कुत्ता भी गया हुआ था। कुत्ता अचानक से दौड़ते हुय एक जगहपर जाकर भौँकनेँ लगा, वह काफी देर तक भोंकता रहा और फिर अचानक हीभौँकना बँद कर दिया। अर्जुन और गुरुदेव को यह कुछ अजीब लगा और वे उस स्थान की औरबढ़ गए जहाँ से कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आ रही थी।
उन्होनेँ वहाँ जाकर जो देखा वो एक अविश्वसनीयघटना थी। किसी ने कुत्ते को बिना चोट पहुंचाए उसका मुँह तीरोँ के माध्यम से बंद करदिया था और वह चाह कर भी नहीं भौंक सकता था। ये देखकर द्रोणाचार्य चौँक गये औरसोचनेँ लगे कि इतनी कुशलता से तीर चलाने का ज्ञान तो मैनेँ मेरे प्रिय शिष्यअर्जुन को भी नहीं दिया है और न ही ऐसे भेदनेँ वाला ज्ञान मेरे आलावा यहाँ कोईजानता है…. तो फिर ऐसी अविश्वसनीय घटना घटी कैसे ?
तभी सामनेँ से एकलव्य अपनेँ हाथ मेँ तीर-कमानपकड़े आ रहा था। ये देखकर तो गुरुदेव और भी चौँक गये। द्रोणाचार्य नेँ एकलव्य सेपुछा, “ बेटा तुमनेँ ये सब कैसे कर दिखाया।”
तब एकलव्य नेँ कहा, “गुरूदेव मैनेँ यहाँ आपकी मूर्ती बनाईहै और रोज इसकी वंदना करने के पश्चात मैं इसके समकक्ष कड़ा अभ्यास किया करता हूँ औरइसी अभ्यास के चलते मैँ आज आपके सामनेँ धनुष पकड़नेँ के लायक बना हूँ।
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गुरुदेव ने कहा, “तुम धन्य हो ! तुम्हारे अभ्यास ने हीतुम्हेँ इतना श्रेष्ट धनुर्धर बनाया है और आज मैँ समझ गया कि अभ्यास ही सबसे बड़ागुरू है।”
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अपने साथ अपने लोगों को लेकर चलें
बहुत समय पहले की बात है एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे. उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े राजामहाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भीपढ़ा करते थे। वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़ेउत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाजसभी के कानो में पड़ी,
“आप सभी मैदानमें एकत्रित हो जाएं।“
आदेश सुनते हीशिष्यों ने ऐसा ही किया।
ऋषिवर बोले, “प्रिय शिष्यों, आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है. मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें. यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा.”
तो क्या आप सब तैयार हैं ?”
”हाँ, हम तैयार हैं”, शिष्य एक स्वर में बोले.
दौड़ शुरू हुई.
सभी तेजी से भागने लगे. वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे. वहाँ बहुत अँधेरा था और उसमे जगह जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था. सभी असमंजस में पड़ गए, जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीँ अब सभी अलग अलग व्यवहार करने लगे ; खैर, सभी ने जैसे-तैसे दौड़ ख़त्म की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।
“पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोगों ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया, भला ऐसा क्यों ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।
यह सुनकर एक शिष्य बोला, “गुरु जी, हम सभी लगभग साथ साथ ही दौड़ रहे थे पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी. कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था तो कोई संभलसंभल कर आगे बढ़ रहा था. और कुछ तो ऐसे भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा उठा कर अपनी जेब में रख ले रहे थे ताकि बाद में आने वाले लोगों को पीड़ा ना सहनी पड़े. इसलिए सब ने अलग अलग समय में दौड़ पूरी की.”
“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ“, ऋषिवर ने आदेश दिया.
आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे. पर ये क्या जिन्हे वे पत्थर समझ रहे थे दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे. सभी आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे.
“मैं जानता हूँ आप लोग इन हीरों के देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं.” ऋषिवर बोले।
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“दरअसल इन्हेमैंने ही उस सुरंग में डाला था,और यह दूसरों के विषय में सोचने वालेशिष्यों को मेरा इनाम है।
इस दौड़ से हमे यह समझने की जरुरत है की आज के युग में यदि हम आगेबढ़ना चाहतें हैं, या हम अपने सपनो को पूरा करना चाहतें हैं तो जरुरी है की हम अपनेसाथ अपने लोगों को लेकर चलें, क्योंकि यदि हमारे लोग आगे बढ़ेंगे तो हम तो आगेबढ़ेंगे ही
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सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है
बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था. इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था. उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था. इस वजह से रोज़ घर पहुँचते - पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था. ऐसा दो सालों से चल रहा था. सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है. फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने किसान से कहा, “मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”
क्यों ? किसान ने पूछा, “तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”
“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ, मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है, और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है.” फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला, “कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो.” घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया, ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा.
किसान बोला,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, और मैंने उसका लाभ उठाया. मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे, तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया. आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ. तुम्ही सोचो अगरतुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सबकुछ कर पाता ?”
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दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं. उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.
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